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‘लेख’ ‘आन्दोलन और सरकार’

आगोश
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‘आन्दोलन और सरकार’

आन्दोलन का जन्म अत्याचार की कोख से जन्म लेता है ।सरकार माने या ना माने अल्लाह देख रहा है।जब जनता आवाज उठाये और भूखे प्यासे अनशन करे और सरकार की कान पर जूं तक ना रेंगे।तब सबाल उठता है,कहीं सरकार मे बैठे लोगों ने स्वं को लोकतंत्र से किसी अन्य तंत्र को लागू करने का मन तो नहीं बना लिया या सत्ता के सुख से इतना मोह हो गया कि सत्ता के बिना रहना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो गया है ।बड़ी-बड़ी कोठीयों व बंगलो पर अपना जन्मसिद्ध अधिकार मान लिया है।

देश के नेताओं के मन मे अगर देश सेवा की लगन हो तो उनकी जय-जयकार होती है,वह सम्मान धन से कहीं आगे है।इसी सिद्धांत को अपना कर नेताओं ने कुर्बानी दी यातनायें सही और देश को आजाद कराया।परन्तु स्थिति आज विपरीत दिशा मे दिखाई दे रही है।अपने लिए ऐशो आराम के साधन जुटाने मे अपना वेतन व भत्ता बढ़ाने की होड़ लग गयी है।ऐसा लगता है संसद और संविधान नेताओं के लिये है।जब चाहे अपने लिये पक्ष -विपक्ष सब सर्वसम्मत हो जाते है।

अगर कहीं और जनता की भलाई को संविधान मे संसोधन की जरुरत होती है।उसे वर्षो तक लटका दिया जाता है अडंगे पे अडंगे लगाये जाते रहते है।सुप्रीमकोर्ट देश की सर्वोच्च अदालत के फैसलों को फिर एक बार बदलने को संसद मे माहौल बनाया जा रहा है।पहले भी बदले जाते रहे है जैसे सहावानू केस जिसका दुश परिणाम आज जनता के सामने है।कहाँ जा रही है।नेताओं मे होड़ लग रही है।सोच इतनी घटिया परिवारवाद को बढ़ाने की व खानदानी नेता बनाने की होड़ –जनता क्या करे क्या ना करे ।

एक ही साधन संविधान सम्मत जनता के पास रह जाता है।वह है आन्दोलन ,धरना अनशन पर सरकार इन सब को फेल करने मे अपनी ताकत का इस्तेमाल कर रही हैऔर अपनी पीठ थप-थपा रही है।पार्टी प्रवक्ता अलग-अलग खोज भरे ताने उल्हाने जैसे बयान जारी कर रहे है।

सवाल उठता है क्या लोकतंत्र खतरे मे है पर ऐसा होना चाहिये।जो आजादी हमने बड़ी मेहनत मशक्कत से पायी है क्या वो ऐसे ही लूट खसोट अपने फायदे नुकसान तक सीमित रह जायेगी ।

आज लग रहा है ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री चर्चिल के शव्द सौ फीसदी,सत्य होते दिखाई दे रहे है।”ऐ इंडिया (भारत )के लोगों तुम इस आज़ादी को नहीं सभाल पाओगे।एक दिन इंडिया चोर,लुटेरे ,बेईमानों के हाथों मे चला जायेगा “।
अब चोर भ्रष्टाचारयों पहचाने जा रहे है ।कुछ जेलों मे हैं और कुछ बहार हैं ।जनता ने सत्ता परिवर्तन कर दिखा दिया-किसी को भी स्पष्ट बहुमत लोकसभा चुनाबों मे नहीं मिला फिर भी सी .बी.आई और पैसे के बल पर जोड़ तोड़ करके लंगड़ी असहाह गठबंधन सरकार देश को चला रही है।मुझे याद आ रहा है फिल्म ‘मेहरबान ‘का गाना जो स्वर्गीय महमूद पर फिल्माया गया था।

‘मेरा गधा गधों का लीडर
कहता है दिल्ली जाकर
सब मांगे अपनी कौम की मै
मनवाकर आऊंगा नही तो घास नहीं खाऊंगा’ ।

क्या सरकार ने आन्दोलन कारियों को ऐसा ही तो नहीं समझ लिया कि ये सब तो फिजूल है । सरकार अपनी घमंडी ऐठ मे आंदोलनों को हल्का ले रही हो -यह सरकार की भयंकर भूल है।लोकतंत्र मे सरकारें अलग -अलग पार्टियो की आती जाती रहती है –

अगर ना मानी सरकार
तो यूo एनo ओo तक जाऊंगा

इस गाने की पंक्तियों का आशय उस भबिष्य की क्रांती से है जिसका बिगुल इसी रामलीला मैदान से स्वर्गीय श्री जयप्रकाश नारायण द्वारा असहयोग आन्दोलन द्वारा फुका जा चूका है ।उस समय की सरकार उस हुंकार से ऐसी डरी,की देश का आपातकाल को देश को झेलना पड़ा।सारे विपक्षी नेता रातों रात जेलों मे ठूस दिये। अभी याद के लिये बहुत सारे भुक्तभोगी नेता आज भी संसद की शोभा बढ़ा रहे है।

जन लोकपाल बिल भ्रष्टाचारयों पर ऐसा शिकंजा है जो काले धन वालों की साँसों को धड्काने वाला है।जिससे भ्रष्टाचारयों का बिना दण्ड के बचना मुश्किल है।जब गाँधी अन्ना की बातें सरकार को अच्छी नहीं लगती,तब आता है नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के रूप बाबा रामदेव ।आज भी आन्दोलन की मशाल दिखाने वाले साधू प्रवर्ति के लोग है।जिनका जनता आदर करती है और उनके नेतृत्व मे जनता अपना सर्वस्य होम करने को तैयार है।जब सुचेता बना आन्दोलन कुछ कर पाने मे असमर्थ रहता है तब उसके विकल्प शास्त्रों मे ढूंडे जाते है।तब रामचरित मानस मे–
‘साधू अवग्या कर फलु ऐसा ।जरइ नगर अनाथ कर जैसो।’
जैसा आज दिल्ली मे चारों तरफ जाम और पुलिस व सरकार असहाय नजर आई इससे भी आगे की परिणीति को रामचरितमानस के एक दोहे से आंका जा सकता है –

“विनय न मानत जलधिजड़\गये तीनि दिन बीति।।
बोले राम संकोप तब भय बिन होइ ना प्रीति।।

सरकार ने आंख बंद कर भ्रष्टाचार व रिश्वतखोरी व देश के हालात पर राहत इन्दौरी का शेर—

वजीरों से सिफारिश की तमन्ना हम नहीं करते।
हमे मालूम है जर्रे को तारा कौन करता है।
घरों की राख फिर देखेंगे पहले देखना यह है ।
घरों को फूंखने का इशारा कौन करता है ।

डॉo हिमांशु शर्मा(आगोश )

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