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‘कोयला की दलाली’ –

आगोश
आगोश
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पानी की बौछारों में और डंडों की फटकारों में।
डटे हुए हम सीना ताने सत्ता के गलियारों में।
पूंछ रहे हैं हिसाब लूट का क्यों छिपे बैठे हो मकानों में।
कहाँ तक हिफाजत करेगी खाकी जब मशाल जलेगी हाथों में।

(1)

दोनों संसद सदन ठप्प हुई हैं कोयला की दलाली में।
जनता पूंछ रही है नेताओं कहाँ कमी रही संविधान बनाने मे।
शोर उठा है संसद से अब पहुँचा है खेत और खलियान में।
काम छोड़ कर दौड़ पड़ें हैं दिल्ली लगे है संकट को सुलझाने में।

(2)

रास्ता देख लिया है हमने भूले ये अनजाने में।
लूट कमाई खा- ना सकोगे चाहे पहुंचो विरानों में।
लेकर जाने से अच्छा है रहे भलाई देकर ही जाने में ।
भबिष्य भलाई मांग रहे हैं मत रहो अब अफसानों में।

(3)

इंकलाब के गगन भेदी नारे गूँज रहे आसमान में।
सिर पर कफ़न बांधकर निकले चाहे पहुंचे शमशान में।
नई रोशनी नई दिशा है नया चलन है हिदोस्तान में ।
अब ना झुकेंगे अब ना रुकेंगे चाहे खून बहे बलिदान में।

(4)

डॉo हिमांशु शर्मा(आगोश )

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