आगोश
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‘कुटिल, कठोर, कुबुद्धि अभागा’
(रामचरितमानस)
(1)– कुटिल बन रही है बीo जेo पीo निर्णय करे नया जनादेश को ,नई -नई चाल चलना छोडे ।
(2)कठोर है सरकार घोटाले पै घोटाले तथा सत्ता सुख के लिये जमी है संसद को भंग कर नये चुनाव होने दें।जनता घोटाले बाजों को चाहती है या अन्य ।
(3)कुबुद्धि बने हैं वो लोग जो घोटालों से घिरी सरकार को समर्थन दे रहे हैं ।
गलती एक की नहीं सबकी है अभागी है,जनता जो ऐसे सांसदों के नेतृत्व मे रहने को मजबूर है ।जनता आक्रोश मे है।जनता संसद से कहीं बड़ी है ।तभी तो जनता जनार्दन कहा जाता है।संसद मे मलाई चाटने से पहले -जनता की चरण धूलि लोग माथें पर लगाते हैं ।
डॉo हिमांशु शर्मा (आगोश)
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