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‘सूपर्णखा का पुर्नजन्म’

आगोश
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“सत्यं शिवमं सुन्दरं ” तीन लोक के मालिक त्रिपुरारी ने धर्म की स्थापना को क्या कुछ नहीं सहा ।
त्रेता युग मे श्री राम चन्द्र जी ने मर्यादा की रक्षा के लिये अवतार लिया और मर्यादा पुरुषोतम ‘राम’ कहलाये।

“कर्म गति टारैउ नहि टरी”
मुनि वशिष्ट से पंडित ज्ञानी सोधन लगन धरी ‘
सीता हरण मरन दशरथ को वन में विपत परी ।

रामचरित मानस मे पंचबटी से कई प्रसंग जुडे हैं । वहीं सुपर्णखा का कामांध उन्माद का भी खास प्रसंग है ।
पंचबटी से अपमानित सूपर्णखा “जैसे अपमानित नारी घायल ‘नागिन’ बन जाती है “। ठीक उसी तरह रावण को अपने अपमान ,’खरदूषण वध’ व सुंदर नारी सीता का वर्णन कर ‘रावण’ को विनाश की तरफ ले जाती है ।रावण को साबधान करके कहती है ।

“राजनीति बिनु धन बिन धर्मा -” (रामचरित मानस)

ऐसा प्रतीत होता है। राजनीति का धन से गहरा सम्बन्ध रहा है। राजनीति मे अब अपार काला धन का भी शोर जोर से हो रहा है।

जब राम लंका पर विजय प्राप्त कर लेते हैं और विभीषण को लंका का राजतिलक कर देते हैं वानरों को वस्त्र आभूषण देते हैं राक्षसों को मुक्ति देते हैं।

इस प्रकार हम देखते हैं लंका मे किसी ना किसी को कुछ ऩा कुछ जरुर मिला परन्तु एक सूपर्णखा को मिली बेइज्जती परन्तु हर्षित मन से पुष्पक विमान मे बैठे श्रीराम से याचक की तरह सूपर्णखा ,सबाल करती है -महाराज मुझे भी कुछ देते जाओ—-शायद श्री राम को अपनी भूल का अहसास होता है ।
तब श्रीराम सूपर्णखा की दया पर सोच और मन से आशीर्वाद देते हुए कहते हैं -“सूपर्णखा कलियुग मे तू एक ससक्त नारी के रूप मे भारत (इंडिया )मे जन्म लेगी तेरे बताये कुतर्क जनता जबरदस्ती मानने को विवश होगी -गद्दी हो या न हो तू मौज से राज करेगी और तेरे द्वारा ही भारत की संस्कृति का हनन व अपमान होगा तथा नारी सस्क्तीकरण का झंडा बुलंद होगा । कलियुग की अबधी प्रत्येक युग से अधिक है । पता नहीं कहाँ कब कैसे या अब सूपर्णखा जन्म लेगी ये सब भबिष्य के गर्त मे छिपा है।

“सत्य कहहिं कवि नारी सुभाऊ, सब विधि अगहू अगाध दुराऊ ।
निज प्रतिबिम्ब बरुकु गहि जाई ,जनिन जाई नरि गति भाई” । (रामचरित मानस)

डॉ हिमांशु शर्मा (आगोश)

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