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‘आ अब लौट चलै’

आगोश
आगोश
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DS

क्या करेंगे गांव में ,जब दूध बिके है ड्राम में ।

एक जमाना बीत गया , गांव से नाता टूट गया ।
चौपालों पर भीड़ कहाँ ,हुक्का से नाता टूट गया ।
रिश्तों में ऐसी मिठास कहाँ, ना गोरी दिखे पनघट में ।
.. (1)
नंगे पैर और नंगे सिर, ना कच्छा पहना टांग में।
भरी दोपहरी गुल्ली डंडा, घूमे खेत और खलियान में।
गुड़ संग छाछ -मकई की रोटी, खाते बैठ पीपल की छाव् में,
ऐसी मस्ती मिले कहाँ , नहाते खुले तालाव में ।
(2)

ग्वाले लेकर जाते गईया, हरे भरे चरवाहों में ।
गोधूलि उठती है धरा से,पंछी गीत सुनाते साझ में ।
दूर कहीं छिपता है सूरज , लालिमा लिये शान में ।
मंदिर मस्जिद रोशन होते, भक्ति गीत मिले अजान में ।
(3)
धान के खेतों की खुशबू उठती, जहाँ आसमान में ।
किसान पसीना जहाँ बहाते, माँ लोरी सुनाती रात में ।
जहाँ जुगनू टिम-टिम करते हैं, मोंर शोर मचाते बाग़ में ।
ये सब सच अब सपना है, आ लौट चले अब शहर में ।
4)

डॉo हिमांशु शर्मा(आगोश )

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