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बदलती डगर

आगोश
आगोश
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युग बदला और `ऋतू बदली माँ दूध लुटाती धार कहाँ ।
चक्की पीसें थी औरत गलियारों में अब शोर कहाँ ।
रोज सबेरे चौका लीपें गोबर मिट्टी का अब काम कहाँ।
लडें लड़ाई सास बहू ननद भावज की तकरार कहाँ ।

(1)

गाय की चंदिया कुत्ता की रोटी धर्मार्थ का दान कहाँ ।
आये मेहमान को सिकें थी पूरी देशी घी की महक कहाँ ।
मिल बैठ करें दीवाली अब ,ऐसे जलते दीप कहाँ ।
होली के रंग फीके पड़ गये अब आपस में मेल कहाँ ।

(2)

घर की याद नहीं सताती अब आंगन में गढ़ा नाल कहाँ ।
दाई लेती फिरे बल्लैया अब    ऐसे लोकाचार कहाँ ।
अस्पताल में जच्चा- बच्चा जनती अब आँचल में दूध कहाँ
बोतल से माँ दूध पिलाती बड़ा होकर  पूंछे शराव की बोतल कहाँ

(3)

बचपन से सीधा आया बुढ़ापा जवानी तू खो गई कहाँ ।

बता जवानी लजा गई क्यों मेरी अंगड़ाई रही कहाँ ।

शिक्षा से आज भिक्षा है अच्छी नित रोज कमाई बैंक कहाँ ।

अमीरी से गरीबी है अच्छी अपहरण की चिंता कहाँ ।

(4)

डॉo हिमांशु शर्मा (आगोश )

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