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शुरु करूँ अंताक्षरी लेके हरि का नाम ।
समय बिताने के लिये करना है कुछ काम।
कक्षा पांच तक सप्ताह के अन्त अधिकतर अंताक्षरी प्रतियोगिता करने का चलन था ।बडे सुंदर काव्य संकलन दोहे छंद सबैया अदि लय बद्ध तरीके से गाये जाते थे।शायद अब उनका स्थान नेताओं की बचकानी बातों ने ले लिया है:-एक ने अमर्यादित भाषा का प्रयोग किया तो पलटवार करके दूसरे ने भी पलटवार करके अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल किया,क्या इसको रोकने का लोकतंत्र मे कोई रास्ता नहीं है। जो देशहित मे ऐसा जबान से निकले जो जनता को आदर्श बने। ज्यादातर नेता सत्ता मे धनबलियो की चापलूसी करने मे लगे रहते है।होगी क्यो नहीं ? धीरे -धीरे जमीदारी और रजबाडे खोखे लोग और उनके सम्बंधित वरिश एबं रिश्तेदारों का जमघट देश की सिद्धांत विहीन राजनीति मे इकठ्ठा हो गये हैं या यूँ कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि धनबल से उन्होने सत्ता और सरकार पर कब्ज़ा कर लिया है।जिससे राजनीति गंदी भ्रष्ट एबं लुट खसोट का पर्याय बन गई है। धन बल के सहारे परिवाद की नई परम्परा राजनीति मे नई उंचाईयों को छू रही है। कद्दावर नेताओं को किनारे कर बिन तजुर्बे को नेतृत्व की डोर सौप दी जाती है या कुछ चापलूस इस तरह की राजनीति चमकाने मे लगे रहते हैं।पहले आदर्शवादी नेता गुलामी से लोकतंत्र व राजनीति सिद्धांत दे गये हैं -परन्तु आज लोकतंत्र के रखवाले ,लोकतंत्र की हत्या करने मे लगे हैं ,कुछ जनता मे परम्परागत खैरात खाने की आदत है —
–जहाँ देखी चूल्हा परात वही गबाई सारी रात।
ईश्वर नेताओं को सद्बुबद्धि दे ,अपने ऐसो आराम व राजमहल जैसे ठाटों से दूर रहकर वेतन ,भत्तों की मलाई चाटने से परहेज करें ।प्रत्येक चुनाव चुनाव मे नये -नये नेता फर्श से अर्श पर पहुँच जाते हैं ।अच्छे कार्य जनहित मे नेता करें तो नेताओं को केवल नेताओं की जय हो ,देवताओं जैसा सम्मान ही बहुत है।
जनता की भलाई देश से प्यार जब नेता करते हैं तो जनता बार -बार वोट की भिक्षा देकर चुनाव जिताती है,पहले यह आदर्श स्वं ब्राह्मणों ने भारत को दिया था ,और सर्वोच्च कहलाये।
“ब्राह्मण को केवल धन भिक्षा “
इसलिये के कर्णधार नेताओं धन के पुजारी मत बनो केवल वोट की भिक्षा कई लिये जनता की सेवा करो सेबक बनो -पहचान फिल्म के गाने से स्वं को नेता चुनो ।
नेता दो तरह के होते हैं —–
“एक मरा तो नाम निशान नहीं ,
एक यादगार बन जाते हैं “।
डॉ o हिमांशु शर्मा
(आगोश )
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