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‘परछाई रहती है पीछे, जब तक यौवन रहता है ।
बात बनी हो धन पल्ले हो, रुतबा पीछे रहता है ।
गुलाब फूल खिलता काँटों मे, कितना बचकर रहता है ।
फूल गुलाब को गले लगाते, सबको प्रेरणा देता है ।(1)
जल में भँवर पडे, नाव को मझदार डुबाता है ।
आँधी के झौकों से भौरा, कमल खोज नहीं पाता।
कर्ज की मय पीते हैं, उनका कुर्ता बिक जाता है ।
नींद नहीं आती है, रात भर डिप्रेशन हो जाता है ।(2)
लोक गीत दुनिया गाती है, कर्ज रोग बन जाता है ।
लोभ से कर्ज हुआ है, पैदा जैन सन्यासी गाता है ।
नाच कूद कर बन्दर मरता, माल कलन्दर खाता है ।
लोन और फोम का चलन, देश मे नीचे दबता जाता है।(3)
साहूकार के सूद में दबकर, किसान खेत बेच चुकाता है|
उधोगपति लेकर लोंन बैंक से, लोन को खा जाता है ।
लोन नहीं चुकता होता तो, बैंक सैटलमेंट कराता है ।
कर्ज बकाया रह जाता है, तो शर्मदार मर जाता है ।(4)
लेखक डॉo हिमांशु शर्मा (आगोश)
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