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नहीं रास जमाना हमको आया ,नौजवानों की जिन्दगी बुढे नेता उबारते।
कितने ही बेरोजगार छोटी सी पगार को,नकद और उधार को शहर और गांव में पैर पसारते।
कैसी भी सरकार हो कर्ज ले उधार दे, गरीब व लाचार की ओर नहीं निहारते।
जिल्लत भरी जिन्दगी से कोई हमें उबार दे, गोदान का गोबर नहीं होरी की बुहारी से बुहार दे।
(1)
हारे थके बौराये से नयन बंद पलक खोलकर,अपनों को अलसाये नयन ढरकते आंसुओँ से निहारते।
लूट लिये सपन सब चुरा लिये कफ़न तक, लाज छोड़ गये नयन कफ़न का झंडा बना वोट को पुकारते।
किसके हो रही चुभन रो रहा अभागा वतन,बात नहीं और की आज हमे दुतकारते ।
पी गये ये खून सब सुख हो गये पिंजर बदन, चुभ रहे शूल से आत्मा चितकारते ।
(2)
बुझ गये चिराग सब अंधकार का राज है, कौन पी गया तेल इनकी बत्तियों को उभारते।
शोर है ग़ली-गली चोर है भई चोर है ,कौन पकड़ा गया ‘नेता’ जिसको लोग निहारते।
शर्म से जनता का चेहरा लाल है चारों तरफ मलाल है,चोर नेता चोर अफसर सब लोग पुकारते।
अब ना बच सकेगी लाज अब यही सोच है, राज रोग लग गया दवा को दुतकारते।
(3)
उठ चलेगी फिर एक आंधी नौजवानों के बीच से, रोक नहीं सकेगा कोई छात्र अब हुंकारते।
कुशासन के द्वार पर आरक्षण के लुटे श्रंगार से, मात्रभूमि की मांग को खून से सभारते ।
राज अपना काम अपना धन लूट का ना काम हो, कर्ज लेकर देश का ना होगा भला-मर्ज को अब काटते।
मेरी यह ललकार सुनलो बंद कान खोलकर ,बच सकेगा ना भ्रष्ट कोई अब उन्है हम पहचानते ।(4)
लेखक डॉo हिमांशु शर्मा(आगोश )
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