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समसू पल्लेदार

आगोश
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समसू पल्लेदार पर डायन महँगाई का साया ।

जागा रहा रात भर बिल्क़ुल भी ना सोया ।

हिसाब लगाता रहा बैठकर क्या पाया क्या खोया ।
घर मे बच्चे बीस आज तक खटिया पर ना सोया । (1)

कुदरत की नेमत हैं बच्चे बेगम ने रोना- रोया ।
पड़ी रहूँ बीमार खाट पर ना कोई बिछा बिछौना ।
मेरी दवाई की छोड़ो मियाँ बच्चों को लाओ खाना ।
सर्द हवा चलती है देखो रजाई एक भरबाना ।(2)

दीन ईमान से लाचार बहुत हूँ कैसे करूँ गुजारा ।
बच्चे घर से बाहर घूमते मुझ को नहीं गंवारा ।
जुम्मा से जुम्मा नहीं देखा कहा गया बेचारा ।
सहरी मुहँ ताक रही है शराफत ने मुझे मारा ।(3)

मस्जिद से अजान लगी है बेगम अब तक सो रही है।
बच्चे सारे हुए इक्कठे धम्मा चौकड़ी मच रही है ।
हकीम जी घर की ड्योडी से मुर्दा जन्नत नसीन हो कह रहे हैं।
बढती आबादी का रोग है घर मे घर से मय्यत उठा रहे हैं ।(4)

डॉo हिमांशु शर्मा (आगोश)

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