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सुन्दरी का स्वप्न

आगोश
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सुन्दरी का स्वप्न

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‘कैसे कहूँ मैं बात रात की, चोरी हो गई चोली ।

रात अँधेरी झुकी हुई थी, साजन जैसी बोली ।

अपना-पराया कुछ नहीं दिखा, छन-छन पायल बोली ।

हाय सखी मैं कहूँ कहा, जब डोरी मेरी खोली ।

कैसे कहूँ मैं बात रात की, चोरी हो गई चोली ———(1)

सिहर उठी मेरी मस्त जवानी, निंदिया ने पलकें खोली ।

ले मन संग अंग हिलोरे, सांसे धीरे-धीरे बोली ।

सेजों की थी चादर कोरी, मांग भरी थी रोली ।

अँखियाँ बतियाँ करे नींद संग, मैं सोई रही अकेली ।

कैसे कहूँ मैं बात रात की, चोरी हो गई चोली —-(2)

बलजोरी में कंगन टूटा, टूट गई मेरी नथली ।

कान कपोल कंगन करघनी, अंगुठी छोड़ गई अंगुली ।

किससे करूँ प्यार की बतियाँ, सखी अभी तक नहीं मिली ।

हाथ छुडाये बात बने ना, जोर-जोर से मैं बोली ।

कैसे कहूँ मैं बात रात की, चोरी हो गई चोली ———(3)

आई मिलन की बेला, अब सावन ऋतु आली ।

पड़त फुहार भिगोवत साड़ी, जब मैंने खिड़की खोली ।

तन मन प्यास बुझी है मेरी, जब बरसी सावन की बदली ।

हुआ
, जब मैंने अखियाँ खोली ।

कैसे कहूँ मैं बात रात की, चोरी हो गई चोली ———-(4)

लेखक डॉo हिमांशु शर्मा (आगोश )

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