आगोश
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धन की देवी जब आती है
धन की देवी जब जीवन मे आती है ।
ख़ुशी की लहर घर- घर मे दौड़ जाती है ।
जब इस जीवन से धन की देवी जाती है ।
खिलते चेहरों की मासूमियत खो जाती है ।
जब धन की देवी आती है तो खूब-खूब-खूब -खूब आती है ।
घर के खाली पडे भण्डारों को भर जाती है ।
रहम करे ऊपर वाला जब धन की देवी जाती है ।
घर बाहर की तो छोड़ों, इस चमड़ी को भी उधेड़ जाती है ।
मुर्ख बन्दे मत इस धन का अहंकार करो ।
जो मिला है सुख से उसका तो इस्तेमाल करो ।
काया और माया का ना घमण्ड करो ।
जो जीवन मे पाया है उस पर ही सब्र करो ।
नश्वर तन की ना जाने कितनी अभिलाषा है ।
झुठा सारा जीवन झूठी अभिलाषा है
माया मन के जैसे आनी- जानी ।
इस मन मोहक जीवन की बस यही कहानी ।
डॉ० हिमांशु शर्मा ( आगोश )
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