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लुट रहा है भारतवर्ष, भूचाल आने वाला है ;
जनता करे फरियाद, नहीं कोई सुनने वाला है ।
दिल्ली की गद्दी की रार में, कुछ होने वाला है ,
अरे कोई रोने वाला है, तो कोई हँसने वाला है ।
(१)
कानून की लेट लतीफी में, गरीब पिसने वाला है ,
अमीरों के हाथ नकेल कानून की, मन चाहा हँकने वाला है ।
कहाँ करे फरियाद न्याय की, सब कुछ बिकने वाला है ,
लुटा सो रहा है भारत, अब उठने वाला है ।
(२)
चापलूसों का एक समूह, सत्ता को खरीदने वाला है,
साँप निकल जायेगा जीवित, कोई लकीर पीटने वाला है ।
हाय कठपुतली डोर किसी की, नाच अब होने वाला है,
काला धन और लूट का धन, चुनाव में खर्च होने वाला है।
(३)
सुरा, शवाव,धन दौलत, जनता पर लुटने वाला है,
ताक लगाये बैठी है जनता, नोटों की बोरी का मुहं खुलने वाला है।
सिद्धांत विहीन हुई राजनीति, आदर्शों का गला घुटने वाला है,
आरक्षण के मुद्दे को लेकर, एक गृहयुद्ध होने वाला है ।
(४ )
डॉo हिमांशु शर्मा (आगोश)
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