आगोश
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आदमी की विवशता
ना जाने कितनी हेरा फेरी, जीवन मै करता है आदमी ,
खाली हाथ आता है, कितने रुधन मचाता है आदमी ।
दिन भर मै ,मै करता है आदमी,
भूख हो दो की, तो चार की ललक रखता है आदमी।
ये मेरा ,ये तेरा , हर पल चिल्लाता है आदमी ,
हर हाल में दूसरो को दोष देता है आदमी ।
बस में नहीं कुछ वरना, ईश्वर को भी कहा छोड़ता है आदमी,
दो गज जमीन की जरुरत ,फिर ज्यादा पर क्यों मरता है आदमी ।
अपने दुःख की चिंता नहीं ,दुसरो के सुख से जलता है आदमी ,
अपना विश्वाश छोड़ ,दुसरो पर आस रखता है क्यों आदमी ।
दिखाने को विश्वाश ,मन मे विष क्यों रखता है आदमी ,
अपने ही जीवन मै सुख -दुख सब देखता है आदमी ।
मरते -मरते भी ना जाने क्या करने की हिम्मत रखता है आदमी
अंत समय मै अपने कर्मो को दोष देता रहता है आदमी ।
डॉo हिमांशु शर्मा (आगोश )
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