जन्माष्टमी (दिव्य प्रकाश) आगोश Annurag sharma(Administrator) जन्माष्टमी (दिव्य प्रकाश)
बारिश हो रही थी थम -थम कै ,जम कै चल रही पुरवाई ।
लिया कृष्ण ने जन्म, देवकी पति से बतलाई ।
कहीं पहरेदार जाग ना जांय,बच्चे को गोकुल दो पहुंचाई ।
बासुदेव हुए जल्द तैयार ,ना पल की देर लगाई ।
लिया कृष्ण ने जन्म, देवकी पति से बतलाई । —–(१)
चले छाज में लड़का रख कै ,पग धीरे -धीरे धर कै ।
भादों मास की रात अंधेरी राह में कुछ ना चमकै ।
गलियारे सूने चुप -चाप ,मन में उठे हिलोर डर -डर कै ।
मन ही मन बातें करते ,गोकुल की सुरत लगाई ।
लिया कृष्ण ने जन्म, देवकी पति से बतलाई । ——(२ )
जमुना बीच उतर कै, धोती ऊपर को सुगनाई ।
जमुना भर रही खूब उफान ,पार कुछ देता नहीं दिखाई ।
लटका दिया कृष्ण ने पैर ,जमुना नीचे उतर आई ।
शेष नाग लगाये रहे छतारी, कृष्ण रहे मुस्काई ।
लिया कृष्ण ने जन्म, देवकी पति से बतलाई । ——(३ )
भादों मास का कृष्ण पक्ष , ‘कृष्ण जन्माष्टमी’ कहलाई ।
इसी रात हुआ दिव्य प्रकाश ,उसकी याद जाती दोहराई।
बंधन से मुक्ति मिलती है ,करके रात जगाई ।
भक्ति से मन भर आता है , कृष्ण अमृत दो बरसाई ।
लिया कृष्ण ने जन्म, देवकी पति से बतलाई । ——(४ )
(आगोश )
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