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जन्माष्टमी (दिव्य प्रकाश)

आगोश
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जन्माष्टमी (दिव्य प्रकाश)


बारिश हो रही थी थम -थम कै ,जम कै चल रही पुरवाई ।

लिया कृष्ण ने जन्म, देवकी पति से बतलाई ।

कहीं पहरेदार जाग ना  जांय,बच्चे को  गोकुल दो  पहुंचाई ।

बासुदेव हुए जल्द तैयार ,ना पल की देर लगाई ।

लिया कृष्ण ने जन्म, देवकी पति से बतलाई । —–(१)


चले छाज में लड़का रख कै ,पग धीरे -धीरे धर कै ।

भादों मास की रात अंधेरी राह में कुछ ना चमकै ।

गलियारे सूने चुप -चाप ,मन में उठे हिलोर डर -डर कै ।

मन ही मन बातें करते ,गोकुल की सुरत लगाई ।


लिया कृष्ण ने जन्म, देवकी पति से बतलाई । ——(२ )


जमुना बीच उतर कै, धोती ऊपर को सुगनाई ।

जमुना भर रही खूब उफान ,पार कुछ देता नहीं दिखाई ।

लटका दिया कृष्ण ने पैर ,जमुना नीचे उतर आई ।
शेष नाग लगाये रहे छतारी, कृष्ण रहे मुस्काई ।

लिया कृष्ण ने जन्म, देवकी पति से बतलाई । ——(३  )


भादों मास का कृष्ण पक्ष , ‘कृष्ण जन्माष्टमी’ कहलाई ।
इसी रात हुआ दिव्य प्रकाश ,उसकी याद जाती  दोहराई।
बंधन से मुक्ति मिलती है ,करके रात जगाई ।
भक्ति से मन भर आता है , कृष्ण अमृत दो बरसाई ।

लिया कृष्ण ने जन्म, देवकी पति से बतलाई । ——(४ )


(आगोश )








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